हाल फिलहाल में एक नई कॉरपोरेट ज्वाइन की है जो देश की प्रतिष्ठित आर्गेनाइजेशनस में से एक है और वो बैंकिंग के क्षेत्र में काम करती है. उद्देश्य ये था कि ईमानदारी से बगैर किसी पक्षपात के काम करूंगा, ज्वॉइनिंग और ट्रेनिंग सेशन के दौरान कंपनी के तमाम प्रतिनिधियों ने मुझसे और मेरे सहकर्मियों से दावा भी किया था कि संस्थान धर्म,जाति,रंग,क्षेत्र और लिंग में कोई भेदभाव नहीं करेगी.एक न्यू ज्वाइनी को तौर पर जितना करना चाहिए था भरपूर कोशिश की कि उतना कर पाऊं.
पता नही कि मैं आर्गेनाइजेशन (कंपनी) द्वारा अपेक्षित मानक को पूर्ण कर पाया या नही परंतु जो भी पैमाने मुझे दिए गए थे उन्हें मैंने पूरे किए. हालाकि वो सौ प्रतिशत थे ये इसका दावा मैं नही करता हूं. सब कुछ ठीक चल रहा था. सारे सीनियर हर एक छोटी से छोटी बात पर मदद को तैयार रहते हैं,खूब सपोर्टिव हैं मुझे पूरा मौका दे रहे हैं कि संस्था के माहौल में घुल मिल जाऊं.
मेरे एक सहकर्मी हैं जिन्हें ये बात रास नही आ रही है कि धीरे धीरे अपने आप को आर्गेनाइजेशन (कंपनी) के हिसाब से फिट कर ले जा रहा हूं, उनकी (सहकर्मी) तमाम चालाकियों को नोटिस कर ले जा रहा हूं. पता नही क्यों उनको ये बात पच ही नही रही है.
इस देश में सबसे आसान चीज है धर्म और जाति को टारगेट करना. किसी को अपने नंबर बढ़ाने हैं तो अगले की जाति या फिर धर्म को टारगेट कर लो और मेरे उन प्रिय सहकर्मी ने यही किया उनको लगता है मेरे सारे कस्टमर मेरी ही जाति हैं जो कि सच में हैं. पर मेरे वो सारे कस्टमर कंपनी की सारी एलिजिबिलिटी को फुलफिल कर रहे हैं जो कंपनी (बैंक) को चाहिए.
हालाकि मुझे इस बात से कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि मुझे लगता है मेरे सीनियर और आर्गेनाइजेशन बगैर किसी पक्षपात के काम करते हैं.
कोड ऑफ कंडक्ट के चलते आर्गेनाइजेशन का नाम नही लिख रहा हूं. और दूसरा ये कि न मैने आर्गेनाइजेशन के नियम के हिसाब से अभी तक शिकायत दर्ज नही की है। हालाकि मैने अपने सीनियर को बता दिया है कि फला सहकर्मी जाति के हिसाब से मेरे काम को जज कर रहा है.
बाकी अपने बचाव और साक्ष्य के लिए ये ब्लॉग लिखा रहा हूं. आगे कुछ होता है तो मै मेरे प्रति घटित तामम अप्रत्याशित घटनाओं का जिम्मेदार उस सहकर्मी को मानूंगा.
नोट: वर्तनी की गलतियों को नजरंदाज कीजिए