Saturday, 6 January 2024

उफ्फ ये जातिवाद

 

हाल फिलहाल में एक नई कॉरपोरेट ज्वाइन की है जो देश की प्रतिष्ठित आर्गेनाइजेशनस में से एक है और वो बैंकिंग के क्षेत्र में काम करती है. उद्देश्य ये था कि ईमानदारी से बगैर किसी पक्षपात के काम करूंगा, ज्वॉइनिंग और ट्रेनिंग सेशन के दौरान कंपनी के तमाम प्रतिनिधियों ने मुझसे और मेरे सहकर्मियों से दावा भी किया था कि संस्थान धर्म,जाति,रंग,क्षेत्र और लिंग में कोई भेदभाव नहीं करेगी.एक न्यू ज्वाइनी को तौर पर जितना करना चाहिए था भरपूर कोशिश की कि उतना कर पाऊं.

पता नही कि मैं आर्गेनाइजेशन (कंपनी) द्वारा अपेक्षित मानक को पूर्ण कर पाया या नही परंतु जो भी पैमाने मुझे दिए गए थे उन्हें मैंने पूरे किए. हालाकि वो सौ प्रतिशत थे ये इसका दावा मैं नही करता हूं. सब कुछ ठीक चल रहा था. सारे सीनियर हर एक छोटी से छोटी बात पर मदद को तैयार रहते हैं,खूब सपोर्टिव हैं मुझे पूरा मौका दे रहे हैं कि संस्था के माहौल में घुल मिल जाऊं.

मेरे एक सहकर्मी हैं जिन्हें ये बात रास नही आ रही है कि धीरे धीरे अपने आप को आर्गेनाइजेशन (कंपनी) के हिसाब से फिट कर ले जा रहा हूं, उनकी (सहकर्मी) तमाम चालाकियों को नोटिस कर ले जा रहा हूं. पता नही क्यों उनको ये बात पच ही नही रही है.

इस देश में सबसे आसान चीज है धर्म और जाति को टारगेट करना. किसी को अपने नंबर बढ़ाने हैं तो अगले की जाति या फिर धर्म को टारगेट कर लो और मेरे उन प्रिय सहकर्मी ने यही किया उनको लगता है मेरे सारे कस्टमर मेरी ही जाति हैं जो कि सच में हैं. पर मेरे वो सारे कस्टमर कंपनी की सारी एलिजिबिलिटी को फुलफिल कर रहे हैं जो कंपनी (बैंक) को चाहिए.

हालाकि मुझे इस बात से कोई फर्क नही पड़ता क्योंकि मुझे लगता है मेरे सीनियर और आर्गेनाइजेशन बगैर किसी पक्षपात के काम करते हैं.

कोड ऑफ कंडक्ट के चलते आर्गेनाइजेशन का नाम नही लिख रहा हूं. और दूसरा ये कि न मैने आर्गेनाइजेशन के नियम के हिसाब से अभी तक शिकायत दर्ज नही की है। हालाकि मैने अपने सीनियर को बता दिया है कि फला सहकर्मी जाति के हिसाब से मेरे काम को जज कर रहा है.

बाकी अपने बचाव और साक्ष्य के लिए ये ब्लॉग लिखा रहा हूं. आगे कुछ होता है तो मै मेरे प्रति घटित तामम अप्रत्याशित घटनाओं का जिम्मेदार उस सहकर्मी को मानूंगा.


नोट: वर्तनी की गलतियों को नजरंदाज कीजिए

Wednesday, 20 May 2020

अधूरी प्रेम कहानी


एक लड़का जो उस रोज परीक्षा हॉल से निकल पेपर कॉलेज के मेन के पास अपने दोस्त के इंतज़ार में खड़ा था.प्रश्नपत्र को आगे पीछे पलट कर वह नम्बरों का हिसाब लगा था साथ ही साथ वह परीक्षा आयोजित करने वालों पर गुस्सा भी कर रहा था.

वो खुद से खीझ मन ही मन कर कह रहा था- याररर पेपर तो बढ़िया गया है बस आखरी प्रश्न छूट गया.कितने लापरवाह है ये संस्थान वाले पूरा एक प्रश्न मिस्प्रिंट है ये आखिरी मिनटों में उसे ठीक कराने आये थे.
थोड़ा चिंतित पर बीती बातों पर मिट्टी डालते हुए वह जमा मोबाइल वापस लेकर जैसे ही गेट पर आया कि तब तक उसका दोस्त आ गया.दोस्त के साथ में एक लड़की भी थी,बेहद खूबसूरत.

दोस्त की बातों का सिर्फ हाँ में जवाब देते हुए,लड़का लगातार उसकी तरफ देखता रहा.बस देखता ही रहा. वक्त मानो कुछ देर के लिए वक्त थम सा गया था. आज उसने दूसरी दफा किसी लड़की को जी भर देखा था.पहली दफे उसने अपनी क्लास की लड़की को इस तरह देखा था.दोनों ने परीक्षा से सम्बंधित की थोड़ी देर कुछ बात की और तब तक अगली पाली की परीक्षा का समय हो गया.

लड़के ने दोस्त और लड़की  से कहा- बेस्ट ऑफ लक अच्छे से लिखना.
उस "अच्छे से लिखना" में भविष्य की तमाम संभावनाओं का सार था.जो कि उसने लड़की को देखते ही आगे के रिश्ते में तलाशनी शुरू कर दी थी.
जैसे तैसे दिन बीते. तीनों मतलब लड़का,लड़के का दोस्त और वो लड़की तीनो परीक्षा में सफल हुए. अब बारी थी परीक्षा के अगले चरण की.

दोनों का एक ही दिन इंटरव्यू था. बस समय बदला हुआ था. लड़के का इंटरव्यू पहले था. लड़के का इंटरव्यू खत्म हुआ वो बस लड़की ले इंतज़ार में था.वो आगयी और उसके के इंटरव्यू में अभी समय था. तीनों कैम्प्स के पुस्तकालय में बैठ गए.
लड़के ने मेहनत से तैयारी की थी.जब भी लड़की कुछ जरूरी टॉपिक पर बात करती लड़का तुंरत ही उसे वो टॉपिक क्लियर कर देता.प्रेम चीज ही कुछ ऐसी की मस्तिष्क की स्मरण शक्तियों को चार गुना कर देता है. फिर भी अगर उसे नही पता होता तो झट से इंटरनेट से निकाल कर दे देता. लड़की मोबाइल पर वो पढ़ती रहती और लड़का एक टक नजरों से उसके चेहरे पर न जाने क्या पढ़ने की कोशिश करता रहता.लड़के की आँखों मे उस लड़की के लिए अथाह समंदर जितना प्रेम था. जिसमें वो बार बार गोते लगाए जा रहा था.

इंटरव्यू के बाद तीनों ने कैम्पस की कैंटीन में चाय पी लड़के और उसके के मना करने पर भी बिल लड़की ने भरा.अब वो तीनों दोस्त थे.वो तीनो वापस अपने शहर आ गए और अंतिम परिणामों का इतंजार करने लगे.

कुछ एक दिन बीतने के बाद लड़के के इंस्टा पर एक नोटिफिकेशन आया. Someone follows you. लड़का खुशी से पागल था.तुरंत फॉलो बैक करके प्रोफाइल की अंतिम पोस्ट तक गया.

परीक्षा का परिणाम आया तो असफल थे. तीनों ने एक दूसरे को सांत्वना दी. लड़का और इसका दोस्त दुःखी था.लड़की ने दोनों को समझाया परेशान न हो जिंदगी पड़ी.इस बार नही अगली दफा. जब भी चलेंगे साथ चलेंगे.

प्रेम में गजब की कन्वेनसिंग पावर होती है.दुनिया भर के लिए न सही पर प्रेमी युगल एक दूसरे के लिए जेठ की दुपहरी में भी बसन्त ला सकते हैं.

लड़का उसे अपनी लिखी प्रेम कविताएं भेजता उसे पसंद भी आती. पर वो कविताएं सिर्फ कविताएं ही रही. प्रपोजल न बन सकीं.

दिन बीते,रातें हुई,बातें हुई. कुछ प्रोफेशनल और कुछ पर्सनल.एक दूसरे के विषय मे सब कुछ जान लेने के बाद भी उनमें एक दूसरे को खो देने के डर से असल बात न हुई.
आज भी वो लड़का उस लड़की से मैसेज पर बात करने के लिए रातों रात जगता है और लड़की मैसेज भी करती है.हाल-चाल,कहानी,कविताएं,शायरियाँ दोनों तरफ से आती है. सराही भी जाती हैं.

पर प्रेमाग्रह के जिन पवित्रम शब्दों को पढ़ने के लिए दो जोड़ी आँखे रातों रात मोबाइल पर टिकी रहती हैं और हर सुबह सूजी रहती हैं.उन दोनों में से किसी का भी मस्तिष्क उनकी उंगलियों को वो टाइप करने का इशारा नही कर रहा हैं.
उन दोनों को जितनी जल्दी हो सके ये समझ लेना चाहिए कि प्रेम होने पर प्रेम को जता न पाना प्रेम को उसके क्रूरतम अंत की तरफ ले जाना है.







पास ही में एक बड़ी कम्पनी की प्रोडक्शन ब्रांच है. एक  15 साल का लड़का(बच्चा) उसमें साफ सफाई का काम करता है. कायदे से उसके पढ़ने और दोस्तों के साथ खेलने के दिन हैं. पर नियति ने उसके साथ कुछ ऐसा नियत किया है कि वो काम कर रहा है, उसकी मजबूरी है.वो छोटा था तो पिताजी गुजर गए .घर पर छोटा भाई हैं,माँ है. कुछ तो करना पड़ेगा.

वो अभी बच्चा है पर किसी तरह उसे काम करने की इजाजत मिल गयी. उसकी नाईट शिफ्ट है. मन लगा के पूरी ईमानदारी से काम करता है. जरूरत भर का तो नही पर थोड़ा बहुत कमा लेता है.

इस भयानक परिस्थिति में भी वो जिनता एडजस्ट कर सकता है करता है और खुश रहने का पूरा प्रयास करता है और कभी खुश रहने का दिखावा भी. ताकि उसके दुःख से उसके नजदीकी लोग दुखी न हों.

रोज की तरह कल भी उसकी नाईट शिफ्ट थी.वही साफ सफाई वाला काम. उसके सहयोगी ने कहा - मैंने कल ये किया था.आज मैं सिर्फ पानी मार दूँगा बाकी का काम तुम कर लेना. उसने कहा- ठीक है.वो थका हुआ तो उसने जाकर थोड़ा सुस्ताने की कोशिश की.

ट्राली जैसी एक वजनदार चीज जो बमुश्किल 3 लोगों से उठती है. उसे खिसकाकर उसने उसपर बैठने की कोशिश की. पर न जाने क्या हुआ उसकी तीन उंगलियां उस भारी ट्राली के नीचे आ गयी.भयानक पीड़ा में मदद के लिए चिल्लाया. उसके साथियों ने मिलकर उसका हाँथ निकाला.

हाथ छूटा तो उसकी तीन उंगलियाँ जमीन पर ही छूट गयी थी. खून से जमीन लाल थी उँगलियों से बेतहाशा खून बह रहा था. वह दौड़ कर अपने दोस्त के पास गया जो उसे,उसकी मजबूरी और उसके दुःखों को जानता और समझता था. उसने उससे कह रखा था कभी कोई छोटी मोटी चोट लगे तो मेरे पास आना,मैं यहीं बगल की लैब में मिलूँगा. फर्स्ट एड बॉक्स है,थोड़ी बहुत मरहम पट्टी कर दूँगा.

पर ये छोटी चोट नही थी बच्चे ने अपनी तीन उंगलियाँ खो दी थी.उसके दोस्त ने जब हथेली देखी तो वह स्तब्ध था. उंगलियाँ कटे हाथ को दूसरे हाँथ की हथेली से थामे उस बच्चे ने अपने दोस्त से पूँछा - उंगलियाँ जुड़ तो जाएंगी न? दोस्त के पास कोई जवाब न था और क्या ही जवाब देता वो कटी हुई उंगलियाँ जुड़ नही सकती.

दोस्त में खून से सनी उसकी उंगलियाँ उठायी. सुपरवाइजर को बुलाया, उसे हॉस्पिटल पहुँचाने के लिए कहा.पास के तीन हॉस्पिटल ने जवाब दे दिया.एक हॉस्पिटल ने तो सीधे इलाज करने से मना कर दिया.चौथे अस्पताल ने इलाज किया.

वो हॉस्पिटल में था तो उसके उसके दोस्त ने आइल घर पहुँच कर उसकी माँ से फ़ोन पर बात कराई. जैसे ही बच्चे की माँ को पता चला कि उसकी उंगलियाँ कट गई है वो फोन पकड़े पकड़े ही बेहोश हो गयी.होश आने पर उसके दोस्त से कहा - बताओ कितना पैसा लगेगा? ठीक से इलाज करा दो मेरे बच्चे का.

इस पूरे वाकये के दौरान वो बच्चा जरा भी नही रो रहा था.इतनी छोटी उम्र में शायद उसने नियति से लड़ते लड़ते भयानक पीड़ाओं को सहना सीख लिया था.उम्मीदों के सहारे जी रहा वो बच्चा हर बार आपने दोस्त की तरफ उम्मीद भरी निगाहों से देखते हुए पूँछ रहा था - ये उंगलियाँ जुड़ तो जाएंगी न? बताओ दोस्त - ये उंगलियाँ जुड़ तो जाएंगी न.

इस दुनिया में अगर सच मे कोई ईश्वर है और दुनिया की तमाम चीजें उसकी मर्जी से घटित होती हैं तो वो ईश्वर क्रूर हैं,उसमें संवेदना नाम की कोई चीज नही हैं और नियति, नियति उस ईश्वर की रखैल है.









Friday, 15 February 2019

#pulwama_terror_attack
42 सैनिकों के
जिस्म से निकला गर्म लाल खून
जो सड़को पर बिखरा पड़ा है
माँस के लोथड़ों और क्षत विक्षत अंगों से पटी सड़क 
गवाह है कि तुम हाँ तुम सब ही
और तुम्हारे नेता
जिम्मेदार है इन मौतों के
जो कभी तलाश ही नही पाए
कश्मीर और आतंकवाद का हल

पर कुछ न तलाश लेंगे लोग
कोई तलाश रहा होगा 
इस घटना पर फ़िल्म
कोई देख रहा होगा सियासत का नया दाँव
कोई अनुपात लगा रहा होगा वोटों का
कोई तलाशेगा धर्म
और तलाशेगा शहीदों की जाति

निंदा,नमन और गर्व के तुम्हारे इन चुटकुलों
से नही लौटने वाली
वो 42 जानें
उन42 परिवारो के
बच्चों,माओं
बाप,भाई और
बहनों
की रंगीन जिंदगी हो 
हो गयी है बेरंग.

धीरे धीरे सब हो जाएगा सामान्य
खत्म हो जाएगा शोक
फिर कोई सिरफिरा आकर
लाल कर जाएगा हमारी जमीनें
सूनी होंगी माओं की गोद
पत्नियों की माँग
पिता और बच्चों का
सहारा खत्म हो जाएगा
हमेशा हमेशा के लिए..

सब इसी तरह चलता रहेगा 
तुम सब करते रहोगे राजनीति
और सियासत.
नमन और श्रद्धांजलि के चुटकुलों से
जी भर जाए तो अपने अपने खादी कुर्ते
वाले बापों से पूँछ लेना सवाल और माँगना जवाब
ताकि आइंदा फिर कभी कोई बाप न खोए अपना बेटा
और बेटा न खोए अपना बाप...

~अभय

Friday, 30 November 2018

"नाटक" न्यूनतम समर्थन मूल्य का


"नाटक" न्यूनतम समर्थन मूल्य का
त्योहारों की इस क्रमशः सीढ़ी के साथ ठंड अपनी उपस्थिति का अहसास कराने लगी है.धूप अब थोड़ा सुनहरी हो गयी है,पर इन सब के समानांतर हमारे बीच एक तबका ऐसा भी जिसे न धूप सुहावनी लग है और न ही गुलाबी ठंड की दस्तक.जानते हो कौन है वो? किसान,हाँ वही किसान जिसकी वजह से भारत एक कृषि प्रधान देश है,पर "कृषक" प्रधान नही।
भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 53% हिस्सा कृषि कार्यों में लगा हुआ है या इसी में अपना रोजगार तलाशता है।
खरीफ की फसल कट चुकी है और किसान अपनी अगली फसल बोने की तैयारियों में जुट गए हैं,फलस्वरूप उन्हें खाद,पानी, बीज और अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के पैसों की जरूरत हैं तो या तो वो बैंक से लोन ले या अपनी खरीफ की फसल बेच कर अपनी जरूरतों को पूरा करें।
पिछले दिनों सरकार ने फसलों के समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की थी जिसके अनुसार फसल की खरीद लागत से 50℅ अधिक पर की जाएगी।किसानों को ये सुन थोड़ा राहत मिली,पर अब जब उसे अपनी फसल बेचनी है उसे समर्थन मूल्य एक बेईमानी सी लग रही है। क्योंकि धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य है 1750 और उसकी फसल उस दाम पर कहीं बिक नही रही। यहां तक कि सरकारी मंडियों में भी नहीं.अक्टूबर में भारत की सबसे बड़ी दिल्ली की नरेला मंडी में मक्का 1105 -1532 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बिका जबकि इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य 1700 रुपए/क्विंटल है। ज्वार 2450 रुपए की एमएसपी से 2000 रुपए प्रति क्विंटल कम पर बिक रहा है।अरहर का भी यही हाल है एमएसपी 5,675 रुपए है,बिक रही 2750-3200 रुपए प्रति क्विंटल। उड़द का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5600 रुपए प्रति क्विटल है और वो 3050 रुपए प्रति क्विटंल के भाव से बिक रही है।
ऐसे ही तमाम फसलों के खरीद मूल्य और न्यूनतम समर्थन मूल्य में बड़ा अंतर है।
सरकारों ने समर्थन मूल्य की घोषणा कर दी,मूल्य तय कर दिया पर फिर भी फसल उससे कम दामों में खरीदी जा रही है,ये सब बाकायदा खुले तौर पर हो रहा है।
मूल्यों का निर्धारण "अंधेर नगरी" वाली कहानी की तरह हो रहा हो रहा है।सरकार ने मंडी की मॉनिटरिंग की ही नही।आढ़ती भी कम दामो में किसान की फसल खरीद रहें है अब या तो किसान उसी दाम पर फसल बेचे या नया लोन ले और कर्ज के बोझ तले दब जाए.फसल का वाजिब दाम न मिलने से शायद उनकी स्तिथि इतनी खराब हो जाये कि उन्हें आत्महत्या करनी पड़े और हम सबको पता तक न चले क्योंकि किसानों की आत्म हत्या के आंकड़े अब सरकार ने निकालना बन्द दिए हैं.अब चुनाव आने को है तमाम राजीनीतिक पार्टियाँ किसान हित की बड़ी बड़ी घोषणाएं अपने घोषणा पत्र में करेंगी,जो अब किसी का "शपथ पत्र" है किसी का "संकल्प पत्र"। किसान के सामने ये पत्र रख दिये जायेंगे किसी विकल्प पत्र की तरह जिसमे से उसी किसी एक का चुनाव करना है,पर वो कितना सही साबित होगा उसका प्रमाण उन मैनिफेस्टो को बनाने वाली पार्टियों की नीतियाँ पहले ही तय कर चुकी होंगी,आजादी के समय भारत की जीडीपी(सकल घरेलू उत्पाद) में कृषि का योगदान 55% था और वर्तमान में यह घट कर 17% रह गया है। किसानों की वर्तमान स्तिथि की जम्मेदार यही राजनीतिक पार्टियां तो हैं।किसानों को और भी समस्याएं है पर फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य न मिल पाना ऐसी समयस्या है जिसका निस्तारण सरकार त्वरित कर सकती है बगैर किसी बड़े प्रयास के।
किसान की राजनीति कर तमाम दलों की राजनीति चमकी,पर वो चमक नेताओं तक ही रही किसान के मुख तक न आ सकी।अन्नदाता कह और महानता के गीत गा-गा कर किसान को उसकी ही व्यथाओं तले ही दाब दिया गया।असल मे हमारे समाज का बर्ताव ही कुछ ऐसा जिसे उसने महान और पूज्यनीय की श्रेणी में रखा है उसी का शोषण का उसकी दुर्दशा कर दी जाती है।
दिल्ली किसान के बारे में कितना सोंचती है इसका अंदाजा आप 2 अक्टूबर की घटना से लगा सकते हैं, किसान के सामने जवान खड़े कर दिए गए उस दिल्ली में घुसने से उसे रोक गया जो कृषि प्रधान देश की राजधानी है।
किसानों की दशा अब भी मुँशी प्रेमचंद की कहानी  "पूस की रात" वाले हल्कू की तरह है जो रात रात भर जाग कर अपनी फसल तैयार करता है पर सही दाम न मिलने के कारण उसे मजबूरन सामान्य बाजार मूल्य(समर्थन मूल्य से कम) पर फसल बेचना पड़ता है।क्योंकि महाजन द्वार पर खड़ा है। आढ़तिये उसकी मजबूरी का फायदा उठा नीलगायों की भांति उसकी आशाओं,आकांक्षाओं और योजनाओं को चर सब चौपट कर जाते हैं..ये सब देख मैं हल्कू के कुत्ते "जबरा" की भांति भौंक रहा हूँ.
पर हल्कू की भी अपनी मजबूरी है वह असहाय है उसके पास अन्य कोई विकल्प नही है।

Sunday, 14 October 2018

#Me_Too #मी_टू

#Me_Too अगर आप इंटरनेट पर थोड़ा बहुत भी सक्रिय रहते होंगे तो शायद इसके बारे में आपको पहले से पता होगा.महिलाओं के साथ हुए शारीरिक शोषण के खिलाफ शुरु हुए ये कैम्पेन हॉलीवुड से शुरू हुआ अब ये अभियान अब भारत आ पहुंचा है दिन प्रति दिन नए और बड़े नामों पर आरोप लग रहे हैं. इस अभियान से महिलाओं की आवाज प्रखर हुई है वो भूत में अपने साथ हुई  घटनाओं को खुल कर लिख रही हैं कि कैसे एक औदे पर बैठे या ताकतवर आदमी ने उसके साथ शोषण किया.पर महिला सशक्तिकरण की बात करने वाला ये पुरूष सत्तात्मक समाज ये स्वीकार ही नही  रहा है कि उसके(महिला) साथ शोषण हुआ था.पितृसत्तात्मक समाज तर्क दे रहा है कि उस महिला ने तब क्यों नही आवाज उठाई,उसने खुद ये सब स्वयम की मर्जी से किया होगा,उसे मज़ा आ रहा था अपना शोषण कराने में। वो दरसअल समझ ही नही रहें है जो आज आरोप लगा रही किसी पहचान की मोहताज नही है उनके पास आज बड़ा नाम और शौहरत है और आज जब समाज और लोग इतना खुले मस्तिष्क के हो गए है तब भी लोग उसकी बात सुनने को राजी नही रहे जब आज ये हालात है तो जब वो पहचान में शून्य,परिस्थितियों से परेशान थी तो तब क्या लोग उसे सुनते या उसकी बात को स्वीकारते . समाज की सोंच ही कुछ ऐसी है अगर किसी लड़की के साथ कुछ गलत हुआ है दोषी सिर्फ लड़कियाँ ही समझी जाती है.हर बार आधी आबादी की यूँ ही दबा दी जाती है या फिर उधर ध्यान ही नही दिया जाता.हर मामले में लड़की को चरित्रहीन कह कर मामले को रफा दफा कर दिया जाता है.
अब जब महिलाएं खुल कर लिख रही हैं तो खल रहा है.कैम्पेन में कई बड़े लोगों पर आरोप लगे है.ऐसा भी नही है कि महिलाएं पूरी तरह से पाक साफ है कई ऐसे भी मामले आये है जब महिलाओं ने भी अपनी बात मनवाने के लिए अपने आप को स्वयम ही पुरुष के हवाले किया हो,किसी भी आरोपी जिस पर शोषण का आरोप लगा हो उसके बारे में पूर्वाग्रह भी नही बनना चाहिए प्राकृतिक न्याय का नियम है जिस पर आरोप लगे हो उसका भी पक्ष सुना जाना चाहिए..
इस कैंपेन के चलते पूरे पुरुष वर्ग को शक के नजरिये से भी देखा जाना गलत है। साथ ही साथ महिलाओं को यह भी ध्यान रखना होगा कि अंधाधुंध या निराधार आरोपों के चलते कहीं वो अपना बराबरी का वो अधिकार ही न खो दें जो अभी तक उन्हें मिला ही नहीं..
शक्ति पूजा के इस पर्व पर इस कैम्पेन का होना अच्छी बात है,पर ये तो अभियान की अभी शुरू भर है अभी इसे और भी सफर तय करना है और वो सफर तब तक जारी रहना चाहिए जब महिलाएं अपने शोषण पर सटीक जवाब ठीक उसी मौके पर ही दें पाएं जब उसके शोषण किये जाने की कोशिश करी जा रही हो..
Me_too एक नारी सशक्तिकरण का बेहतरीन अभियान हो साबित हो सकता है क्योंकि इससे एक स्वस्थ समाज का निर्माण होगा।
हमारी-आपकी बेटियों और बहनों को तमाम सार्वजनिक जगहों या स्कूल, कॉलेज अथवा ऑफिस में शोषण का शिकार न होना पड़े,उन्हें उन क्षणों को गठरी की भाँति न ढोना पड़े जिन्हें वो समाज के डर शायद आज तक आपके या लोगों के सामने न रख पायीं हो.Me_Too से वो बोलना सीखेंगी और शायद उसी समय जवाब देना भी..

Thursday, 16 August 2018

अटल

वो जिसने परमाणु परीक्षण कर भारत को परमाणु शक्ति बनाया.वो जिसने सेना का शौर्य एवम मनोबल बढ़ा कारगिल विजय दिलाई,वो जिसने यूएन में भी प्रथम बार हिंदी में भाषण दिया.. वो जिसका भाषण प्रारम्भ होने पर चीजें स्वतः ही शांत हो जाती थी.. वो ओजस्वी भाषण जिसका प्रमुख गुण था.वो जिसने तमाम असफलताओं के बाद भी अपना ध्येय नही बदला.... राजनीतिक जीवन मे लगभग 90 प्रतिशत काल में विपक्ष में रहते हुए उसने सदैव सिद्धान्तों के साथ सैद्धान्तिक राजनीति की. वो जिसने न तो कभी वोटों की राजनीति की और कभी नोटों की. तमाम चुनावी असफलाओं के पश्चात भी जिसने उदारता नही छोड़ी,वो कभी तल्ख नही हुए.वो जो इस राजनीति के दलदल में उतर कर भी बेदाग रहा. वो जिसने सैकड़ो काव्य कृतियों से भारतीय जनों को सदैव प्रेरित किया.
वो जिसके अनुसार-भारत जमीन का टुकड़ा नहीं, जीता जागता राष्ट्रपुरुष है। हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है, पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं। पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं। कन्याकुमारी इसके चरण हैं,...
वो जिसका एक भी विरोधी न था.
वो जिसका जीवन लाखों की प्रेरणा है, वो जो जानता था कि दुरूह से दुरूह मुद्दे को जनता के दिल की बात कैसे बनाया जा सकता है, वो जिसको सब स्वीकारते थे और वो जो सबको स्वीकारता था तथा उनमें स्वीकार्यता का दूसरा सबसे बड़ा गुण था..वो जो कभी बदला नही पर सबको बदल गया.वो जिसके बारे में जितना लिखूँ कम है,वो जिसके जीवन मंडल की महिमा मंडित करने की लिए मेरे शब्दकोश में शब्दों की अल्पता है.. वो जो सबको प्रिय था,वो जो केवल एक व्यक्ति नही युग पुरुष था.भारतीय राजनीति का ऐसा कोई लम्हा न था.जब उसको याद न किया गया हो.वो माँ भारती के मस्तक पर दीप्त ओजस्वी सूर्य था. आज वो अस्त हो गया.
दुःखद "अटल बिहारी बाजपेयी" जी आज मौन हैं। काल के कुचक्र ने देश की प्रखरतम वाणी को हमसे छीन लिया... पर उनका व्यक्तित्व सदैव हम सबका जीवन के अग्रिम सफर में मार्ग दर्शन करता रहेगा.. भारत को सदैव आप की अल्पता खलेगी..
अंत मे अटल जी को श्रद्धांजलि उनकी ही कविता से देना चाहूँगा..

ठन गई!
मौत से ठन गई!

जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,
सामने वार कर फिर मुझे आज़मा।

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर।

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं।

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला।

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए।

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,
नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है।

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,
देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई।

मौत से ठन गई।

                         अलविदा "अटल जी" 🙏